Friday, January 30, 2009

''हसरत''


हमने मांगी थी अक्सर दुआए बहुत,
हसरतो को मगर,उम्र दे न सके !

तेरे दामन को भर देते फूलों से हम,
कांटो को पर अलग उनसे कर न सके!

बेखुदी में जिए तो क्या गम है,
कभी ख़ुद को जुदा तुमसे कर न सके!

दर्द की सीप में बंद मोटी मिले,
कतरे उन अश्को के जो गिर न सके!!

3 comments:

  1. हमने मांगी थी अक्सर दुआए बहुत,
    हसरतो को मगर,उम्र दे न सके !
    बहुत ..खूब ....लिखा है ..बधाई ...

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  2. बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति है आपकी.
    युवा शक्ति को समर्पित हमारे ब्लॉग पर भी आयें और देखें कि BHU में गुरुओं के चरण छूने पर क्यों प्रतिबन्ध लगा दिया गया है...आपकी इस बारे में क्या राय है ??

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