Monday, February 9, 2009
''एहसास''
दूर होकर पास हो तुम,
रेशमी एहसास हो तुम!
प्यासी रे गिरताप की मैं,
तृप्ति का आभास हो तुम!
शब्द लगते छंद जैसे,
गति का विन्यास हो तुम!
कुछ तो,कुछ तो बात है जो,
ख़ास में भी ख़ास हो तुम!
जेष्ठ की हूँ दोपहर मैं,
और श्रावन मास हो तुम!
साधना होगी सफल मेरी,
एक ऐसी आस हो तुम !
फूल घाटी मधुबन की,
वास का आभास हो तुम!
मौन प्रतिमा सी हूँ मैं,
यूँ मुखर बिंदास हो तुम!
क्या भला अस्तित्व तुम बिन,
क्योकि मेरी साँस हो तुम!!
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बहुत सुंदर लिखा है
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